विश्वकर्मा पूजा का इतिहास और इसकी जड़ें भारतीय पौराणिक कथाओं से जुड़ी हैं। भगवान विश्वकर्मा को देवताओं के वास्तुकार और निर्माण कला के विशेषज्ञ के रूप में माना जाता है। हिंदू धर्म में उन्हें सृष्टि के निर्माणकर्ता और हर प्रकार के शिल्पकला और यांत्रिकी के देवता के रूप में पूजा जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार विश्वकर्मा ने देवताओं के लिए दिव्य भवन, अस्त्र-शस्त्र, विमान और अन्य अद्भुत वस्तुओं का निर्माण किया था। उनका उल्लेख महाभारत और ऋग्वेद में भी मिलता है।
महाभारत के अनुसार इंद्र का स्वर्गलोक, भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र और भगवान शिव का त्रिशूल विश्वकर्मा के ही रचनात्मक कार्यों का परिणाम हैं। इसी तरह द्वारका नगरी, जिसे भगवान कृष्ण के लिए बनाया गया था, भी उनकी प्रसिद्ध कृतियों में से एक है।
विश्वकर्मा पूजा का महत्व
विश्वकर्मा पूजा का महत्व भारतीय समाज में यांत्रिकी, उद्योग और शिल्प से जुड़े लोगों के लिए विशेष रूप से है। इसे आमतौर पर इंजीनियर, आर्किटेक्ट, कारपेंटर, मशीन ऑपरेटर और विभिन्न प्रकार के निर्माण उद्योगों से जुड़े लोग बड़े उत्साह से मनाते हैं। यह दिन न केवल भगवान विश्वकर्मा के सम्मान में मनाया जाता है बल्कि यह कर्मशीलता, सृजन और उन्नति का भी प्रतीक माना जाता है।
इस दिन भगवान विश्वकर्मा की पूजा करके लोग अपने औजार, उपकरण और मशीनों को शुभ मानते हैं। यह पूजा उनके कार्यक्षेत्र की सफलता और उन्नति के लिए की जाती है। इसके अलावा कई लोग अपने व्यवसाय की अच्छी शुरुआत और प्रगति की कामना के साथ इस पूजा का आयोजन करते हैं।
क्यों मनाई जाती है विश्वकर्मा पूजा
विश्वकर्मा पूजा मुख्य रूप से भगवान विश्वकर्मा के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने और उनकी कृपा से कार्यक्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिए मनाई जाती है। इसके अलावा यह पूजा यह संदेश देती है कि हर प्रकार की रचनात्मकता, चाहे वह भौतिक निर्माण हो या मानसिक सृजन, भगवान विश्वकर्मा की प्रेरणा से होती है।
आधुनिक युग में जब यांत्रिकी और तकनीक का महत्व तेजी से बढ़ा है, तब विश्वकर्मा पूजा और भी प्रासंगिक हो गई है। उद्योगों, फैक्ट्रियों और विभिन्न प्रकार की मशीनों से जुड़े लोग इस दिन अपने कार्यस्थल पर पूजा करते हैं और अपने औजारों का शुद्धिकरण करते हैं।
विश्वकर्मा पूजा का उत्सव और आयोजन- vishwakarma puja kab hai
भारत में विश्वकर्मा पूजा विभिन्न क्षेत्रों में हर साल 17 सितंबर को धूमधाम से मनाई जाती है। खासकर पश्चिम बंगाल, ओडिशा, बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक में इसका विशेष महत्व है। इस दिन लोग अपने घरों, कारखानों और कार्यस्थलों पर भगवान विश्वकर्मा की प्रतिमा स्थापित करते हैं और उनकी पूजा अर्चना करते हैं। पूजा के दौरान, हल्दी, चंदन, फूल, धूप और प्रसाद का उपयोग होता है।
औजारों और मशीनों की पूजा करने के बाद उन्हें दिनभर के लिए आराम दिया जाता है और कार्य नहीं किया जाता। कारखानों और उद्योगों में श्रमिकों और कर्मचारियों के लिए भंडारे और सामूहिक भोज का भी आयोजन किया जाता है।
यह दिन श्रमिकों के लिए न केवल श्रद्धा और आस्था का दिन होता है बल्कि इसे सामूहिकता और एकजुटता के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है। इस पूजा के माध्यम से कार्य और कर्म को देवतुल्य मानने की परंपरा को आगे बढ़ाया जाता है।