केंद्र सरकार वक्फ एक्ट में बड़े पैमाने पर संशोधन करने की तैयारी में है। सूत्रों के अनुसार सरकार ने वक्फ बोर्ड की शक्तियों को सीमित करने के लिए 40 संशोधनों को मंजूरी दी है। ये संशोधन वक्फ बोर्ड की उस अधिकारिता को सीमित करेंगे जिसके तहत वे किसी भी संपत्ति को “वक्फ संपत्ति” घोषित कर सकते हैं। प्रस्तावित संशोधन के तहत, वक्फ बोर्ड द्वारा दावा की गई संपत्तियों का अनिवार्य सत्यापन किया जाएगा। यह विधेयक अगले सप्ताह संसद में पेश होने की संभावना है।
वक्फ संपत्तियों पर सख्त निगरानी
सूत्रों ने बताया कि प्रस्तावित संशोधनों के अनुसार वक्फ बोर्ड द्वारा की गई सभी संपत्तियों के दावों का अनिवार्य सत्यापन किया जाएगा। यह प्रक्रिया सुनिश्चित करेगी कि वक्फ बोर्ड द्वारा दावा की गई संपत्तियों का दुरुपयोग न हो सके। इसके अलावा जिला मजिस्ट्रेटों को वक्फ संपत्तियों की निगरानी में शामिल करने पर भी विचार किया गया है ताकि संपत्तियों के दुरुपयोग को रोका जा सके।
महिला प्रतिनिधित्व को मिलेगा बढ़ावा
प्रस्तावित संशोधन न केवल वक्फ संपत्तियों की निगरानी को सख्त करेंगे, बल्कि केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य बोर्डों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को भी बढ़ावा देंगे। सरकार का मानना है कि इससे वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ेगी।
इतिहास: वक्फ एक्ट का विकास
1995 में वक्फ एक्ट को लागू किया गया था ताकि ‘अवकाफ’ – “जो संपत्तियाँ एक वक्फ द्वारा दान की जाती हैं और जिन्हें मुस्लिम कानून के तहत धार्मिक, पवित्र, या धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए माना जाता है” – का नियमन किया जा सके। 2013 में, यूपीए सरकार ने इन बोर्डों की अधिकारिता को और मजबूत किया था। लेकिन अब केंद्र सरकार इन शक्तियों को सीमित करने की दिशा में कदम उठा रही है।
न्यायालय में लंबित मामले
पिछले साल मार्च में केंद्र ने दिल्ली हाई कोर्ट को बताया था कि वक्फ एक्ट के एक या अधिक प्रावधानों को चुनौती देने वाली लगभग 120 रिट याचिकाएँ देशभर के विभिन्न न्यायालयों में लंबित हैं। यह जानकारी एक जनहित याचिका (PIL) की सुनवाई के दौरान सामने आई थी, जिसे वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने दायर किया था।
अश्विनी कुमार उपाध्याय की याचिका
अश्विनी कुमार उपाध्याय ने वक्फ एक्ट की कुछ प्रावधानों की वैधता को चुनौती दी थी और केंद्र सरकार से एक “समान कानून” बनाने की दिशा में निर्देश देने की मांग की थी, जो कि सभी धर्मों के ट्रस्ट और धर्मार्थ संस्थानों पर लागू हो सके। उनका दावा था कि वक्फ संपत्तियाँ अन्य गैर-इस्लामी धार्मिक समूहों द्वारा संचालित ट्रस्ट, धर्मार्थ और धार्मिक संस्थानों को दिए गए “विशेष अधिकार” का आनंद नहीं ले सकतीं।
विशेषाधिकार का मुद्दा
याचिका में कहा गया कि वक्फ एक्ट 1995 को वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन के नाम पर बनाया गया था, लेकिन हिंदू, बौद्ध, जैन, सिख, यहूदी, बहाई, पारसी और ईसाई धर्म के अनुयायियों के लिए ऐसे कोई समान कानून नहीं हैं। याचिका में कहा गया- “इसलिए, यह धर्मनिरपेक्षता, राष्ट्रीय एकता और अखंडता के खिलाफ है,” ।
वक्फ बोर्ड की शक्तियों पर सवाल
याचिका में यह भी कहा गया कि वक्फ एक्ट ने वक्फ बोर्डों को व्यापक और अनियंत्रित शक्तियाँ दी हैं और वक्फ संपत्तियों को अन्य धर्मार्थ धार्मिक संस्थानों से ऊपर स्थान दिया है। यह कहा गया- “किसी अन्य अधिनियम ने ऐसी व्यापक शक्तियाँ और स्थिति नहीं दी है” ।
धारा 40 का विवाद
याचिका में कहा गया कि वक्फ बोर्ड को यह अधिकार दिया गया है कि वह यह तय कर सके कि कोई संपत्ति वक्फ संपत्ति है या नहीं और धारा 40 के तहत वह किसी भी ट्रस्ट या सोसायटी की संपत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित कर सकता है। जिन व्यक्तियों की संपत्तियाँ वक्फ बोर्ड द्वारा वक्फ संपत्ति के रूप में मानी जाती हैं, उन्हें इसके बारे में जानने या इस निर्णय के खिलाफ अपील करने का कोई अवसर नहीं दिया गया है।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ
इस मुद्दे पर विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं की प्रतिक्रियाएँ भी सामने आई हैं। भाजपा, कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी सहित कई दलों के नेताओं ने इस पर अपने विचार रखे हैं।
भाजपा की प्रतिक्रिया
भाजपा के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने इस कदम का स्वागत किया और कहा कि यह वक्फ संपत्तियों के दुरुपयोग और भ्रष्टाचार को रोकने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
कांग्रेस की प्रतिक्रिया
कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने इस कदम की निंदा की और इसे मुस्लिम समुदाय के अधिकारों पर सीधा हमला बताया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस इस फैसले का विरोध करेगी और इसके खिलाफ संघर्ष करेगी।
समाजवादी पार्टी की प्रतिक्रिया
समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने इस कदम को साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा देने वाला बताया और कहा कि उनकी पार्टी इस कदम का विरोध करेगी।
बहुजन समाज पार्टी की प्रतिक्रिया
बसपा प्रमुख मायावती ने तटस्थ रुख अपनाते हुए कहा कि वक्फ संपत्तियों का सही उपयोग होना चाहिए, लेकिन इसके लिए सरकार को मुस्लिम समुदाय के नेताओं और वक्फ बोर्ड के साथ मिलकर काम करना चाहिए।
वक्फ एक्ट में संशोधन और वक्फ बोर्ड की शक्तियों को सीमित करने का केंद्र सरकार का निर्णय विवादों में घिर गया है। विभिन्न राजनीतिक दलों और समुदायों के नेताओं की प्रतिक्रियाएँ इसे और जटिल बना रही हैं। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सरकार अपने फैसले पर कैसे आगे बढ़ती है और इस विवाद का समाधान किस प्रकार से होता है। पारदर्शिता और जवाबदेही लाने के उद्देश्य से उठाए गए इस कदम का स्वागत किया जाना चाहिए, लेकिन इसे लागू करने के तरीकों में संतुलन बनाए रखना भी उतना ही महत्वपूर्ण है ताकि सभी संबंधित पक्षों की चिंताओं को उचित रूप से संबोधित किया जा सके।