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पटना में भारत बंद के दौरान हुए एक अजीबो-गरीब हादसे ने सबको चौंका दिया। बुधवार को बंद समर्थकों पर पुलिस द्वारा किए गए लाठीचार्ज के दौरान एक पुलिसवाले ने गलती से पटना के एसडीएम श्रीकांत कुंडलिक खांडेकर को डंडा मार दिया। यह घटना तब हुई जब एसडीएम सादे कपड़ों में थे और भीड़ को नियंत्रित करने के लिए तैनात पुलिस बल के बीच खड़े थे।
गलती का वीडियो वायरल, पुलिसवाले ने मांगी माफी
इस पूरी घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है, जिसमें दिखाया गया है कि कैसे एक पुलिसवाला अनजाने में एसडीएम खांडेकर को डंडा मार देता है। जैसे ही डंडा एसडीएम को लगता है, वह हक्के-बक्के रह जाते हैं। इसके बाद उनके सहयोगी पुलिसकर्मी फौरन उस गलती करने वाले पुलिसवाले को समझाते हैं कि उसने गलती से एक उच्च अधिकारी को मारा है।
वीडियो में दिखाया गया है कि पुलिसवाला एसडीएम की ओर इशारा करते हुए उनसे माफी मांगता है। इसके बाद दोनों के बीच बातचीत होती है। इस घटना ने पुलिस प्रशासन की लापरवाही और बंद के दौरान हुई भारी गहमागहमी को उजागर कर दिया है।
डाक बंगला चौक पर हुआ हादसा, लाठीचार्ज और वॉटर कैनन का इस्तेमाल
यह अजीबो-गरीब घटना बिहार की राजधानी पटना के व्यस्त डाक बंगला चौक पर घटी। प्रदर्शनकारी जब जेपी गोलंबर चौराहे पर लगे बैरिकेड्स को तोड़ते हुए दक बंगला पहुंचे तो हालात को काबू में करने के लिए पुलिस ने लाठीचार्ज का सहारा लिया। भीड़ को तितर-बितर करने के लिए वॉटर कैनन का भी इस्तेमाल किया गया।
भारत बंद के दौरान बिहार के कई हिस्सों में पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़पें हुईं। हालांकि पटना में हुई इस घटना ने प्रशासनिक अधिकारियों की सुरक्षा पर सवाल खड़े कर दिए हैं, जहां एसडीएम जैसे वरिष्ठ अधिकारी खुद इस तरह की गलती का शिकार हो गए।
भारत बंद का मिला-जुला असर, बिहार, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में ज्यादा प्रभाव
भारत बंद के प्रति लोगों की प्रतिक्रिया मिश्रित रही। बिहार, राजस्थान और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में इसका सबसे ज्यादा असर देखा गया। यह बंद ‘आरक्षण बचाओ संघर्ष समिति’ द्वारा सुप्रीम कोर्ट के 1 अगस्त के फैसले के विरोध में बुलाया गया था।
सुप्रीम कोर्ट की सात सदस्यीय बेंच, जिसकी अध्यक्षता भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ कर रहे थे, उसने 6:1 के बहुमत से फैसला दिया कि राज्य सरकारें अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) के भीतर और अधिक पिछड़ी जातियों के लिए कोटा सुनिश्चित करने के लिए उप-वर्गीकरण कर सकती हैं। इस फैसले के खिलाफ बंद का आयोजन किया गया था, जिसमें आयोजकों ने फैसले को ‘रद्द’ करने और केंद्र सरकार से इसे ‘अस्वीकार’ करने की मांग की है।
अन्य मांगों में SC, ST और OBC के लिए ‘न्याय और समानता’, आरक्षण पर संसद का एक नया अधिनियम, केंद्रीय सरकारी नौकरियों में SC/ST/OBC के लिए जाति आधारित डेटा की रिहाई, उच्च न्यायपालिका में इन समूहों के लिए 50% प्रतिनिधित्व का लक्ष्य और केंद्रीय/राज्य सरकारी नौकरियों तथा सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों में लंबित रिक्तियों को भरने की मांग शामिल हैं।