कृष्ण जन्माष्टमी: भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव का महापर्व

कृष्ण जन्माष्टमी

कृष्ण जन्माष्टमी एक ऐसा पर्व है जो हमें भगवान श्रीकृष्ण के जीवन और उनकी शिक्षाओं को स्मरण करने का अवसर प्रदान करता है। यह पर्व न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि हमारे सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन का भी एक अभिन्न हिस्सा है। इस दिन को मनाकर हम अपने जीवन में श्रीकृष्ण की शिक्षाओं को आत्मसात कर सकते हैं और सच्चे अर्थों में उनके भक्त बन सकते हैं।

कृष्ण जन्माष्टमी का इतिहास

भारतीय संस्कृति में कई महत्वपूर्ण त्यौहार और उत्सव हैं, जिनमें से एक है ‘कृष्ण जन्माष्टमी’ या ‘गोकुलाष्टमी’ । यह पर्व भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। हिंदू धर्म में भगवान श्रीकृष्ण को विष्णु के आठवें अवतार के रूप में पूजा जाता है। उनका जीवन और उनकी शिक्षाएँ भारतीय समाज और संस्कृति का अभिन्न हिस्सा हैं।

कृष्ण जन्माष्टमी का शुभ मुहूर्त और तिथि

2024 में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 26 अगस्त को मनाई जाएगी. पंचांग (Panchang) के अनुसार भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि, सोमवार 26 अगस्त तड़के 03 बजकर 39 मिनट से शुरू होगी और 27 अगस्त रात 02 बजकर 19 मिनट पर ख़त्म होगी . इस तरह उदयातिथि के अनुसार 26 अगस्त को जन्माष्टमी मनाई जाएगी और इसी दिन व्रत-पूजन किया जाएगा।

श्रीकृष्ण का जन्म और बाल लीला

भगवान श्रीकृष्ण का जन्म द्वापर युग में मथुरा के कारागार में हुआ था। उनके माता-पिता वासुदेव और देवकी थे, जिन्हें कृष्ण के मामा कंस ने कारागार में बंदी बना रखा था। कंस को देवकी के आठवें पुत्र से अपनी मृत्यु का भय था, इसलिए उसने देवकी की सभी संतानों को मार डाला। लेकिन जब श्रीकृष्ण का जन्म हुआ, तब उनके पिता वासुदेव ने उन्हें यमुना नदी पार कर गोकुल में नंद बाबा और यशोदा माता के पास सुरक्षित पहुंचा दिया।

गोकुल में श्रीकृष्ण ने अपने बाल्यकाल की कई लीलाएँ कीं। उन्होंने अपने बालसखाओं के साथ मिलकर माखन चोरी, गोपियों के साथ रासलीला और कालिया नाग का वध जैसी कई अद्भुत घटनाएँ कीं। श्रीकृष्ण की बाल लीलाएँ हमें उनकी दिव्यता और महानता का आभास कराती हैं।

कृष्ण जन्माष्टमी का महत्व

कृष्ण जन्माष्टमी का त्यौहार हमें श्रीकृष्ण की शिक्षाओं और उनके जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं को याद करने का अवसर प्रदान करता है। यह पर्व न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। इस दिन भक्तगण व्रत रखते हैं, भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करते हैं और उनके जीवन से संबंधित कथा, भजन और कीर्तन का आयोजन करते हैं।

कृष्ण जन्माष्टमी की तैयारियाँ

कृष्ण जन्माष्टमी की तैयारियाँ हफ्तों पहले से शुरू हो जाती हैं। मंदिरों और घरों को सजाया जाता है, विशेष रूप से मथुरा और वृंदावन में इस पर्व की धूमधाम देखते ही बनती है। भक्तगण भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमाओं को सजाते हैं और उनके जन्म की प्रतीकात्मक घटनाओं का मंचन करते हैं।

व्रत और पूजा विधि

कृष्ण जन्माष्टमी के दिन भक्तगण व्रत रखते हैं और रात के 12 बजे भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाते हैं। व्रत रखने वाले व्यक्ति पूरे दिन निराहार रहते हैं और केवल फलाहार करते हैं। भगवान श्रीकृष्ण की पूजा विधि में पंचामृत स्नान, वस्त्र और आभूषण पहनाना, तुलसी पत्र अर्पण करना और विशेष भोग लगाना शामिल है। रात के समय जब श्रीकृष्ण का जन्म होता है, तब भक्तगण भजन-कीर्तन करते हैं और प्रसाद का वितरण करते हैं।

दही-हांडी उत्सव

कृष्ण जन्माष्टमी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा ‘दही-हांडी’ उत्सव भी है, जो विशेष रूप से महाराष्ट्र में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। इस उत्सव में मटकी को ऊँचाई पर लटकाया जाता है और युवाओं की टोली मानव पिरामिड बनाकर उसे फोड़ने का प्रयास करती है। यह श्रीकृष्ण के बाल्यकाल की माखन चोरी की लीला का प्रतीक है और इसे देखने के लिए भारी संख्या में लोग जुटते हैं।

भगवान श्रीकृष्ण की शिक्षाएँ

भगवान श्रीकृष्ण की शिक्षाएँ आज भी हमारे जीवन के लिए प्रासंगिक हैं। गीता का उपदेश जो उन्होंने अर्जुन को महाभारत के युद्ध के समय दिया था, हमें जीवन के कठिन समय में मार्गदर्शन देता है। श्रीकृष्ण ने कर्मयोग, भक्तियोग और ज्ञानयोग के सिद्धांतों को प्रतिपादित किया, जो हमें सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं।

विश्वभर में कृष्ण जन्माष्टमी

कृष्ण जन्माष्टमी केवल भारत में ही नहीं बल्कि विश्वभर में मनाई जाती है। इस्कॉन (इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कॉन्शियसनेस) के माध्यम से यह पर्व विदेशों में भी धूमधाम से मनाया जाता है। अमेरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और कई अन्य देशों में इस्कॉन मंदिरों में श्रीकृष्ण की पूजा और जन्मोत्सव का आयोजन किया जाता है।

आधुनिक समाज में कृष्ण जन्माष्टमी का महत्व

आधुनिक समाज में भी कृष्ण जन्माष्टमी का महत्व बरकरार है। यह पर्व हमें भारतीय संस्कृति और परंपराओं से जोड़े रखता है और हमें श्रीकृष्ण की दिव्यता और उनके जीवन से प्रेरणा लेने का अवसर प्रदान करता है। उनके जीवन से हम साहस, प्रेम, और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा प्राप्त करते हैं।

Disclaimer– इस लेख में दी गयी जानकारी विभिन्न मान्यताओं,धर्मग्रंथों और दंतकथाओं से ली गई हैं, सत्यसंवाद इन की पुष्टि नहीं करता।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *