कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद: हाईकोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की याचिकाएं खारिज कीं, 12 अगस्त को मुद्दों के निर्धारण की तारीख

कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरुवार को श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद में हिंदू भक्तों के मुकदमों की सुनवाई को माने जाने योग्य करार दिया और मुस्लिम पक्ष की याचिकाओं को खारिज कर दिया। कोर्ट ने सभी मुकदमों को माने जाने योग्य ठहराते हुए 12 अगस्त को मुद्दों के निर्धारण के लिए अगली सुनवाई की तारीख तय की है।

विवाद की पृष्ठभूमि

मुगल सम्राट औरंगजेब के शासनकाल में मथुरा में बनी शाही ईदगाह मस्जिद के विवादित स्थल को लेकर हिंदू भक्तों ने मुकदमे दायर किए हैं। उनका आरोप है कि यह मस्जिद भगवान कृष्ण के जन्मस्थान पर बने मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी। हिंदू याचिकाकर्ताओं ने शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने और कृष्ण जन्मभूमि मंदिर की पुनर्स्थापना की मांग की है। इस मामले में मुस्लिम पक्ष ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की बात कही है।

कानूनी दलीलें और फैसले

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह माना कि हिंदू भक्तों के मुकदमे लिमिटेशन एक्ट, वक्फ एक्ट और पूजा स्थलों (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 के तहत प्रतिबंधित नहीं हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि 12 अक्टूबर 1968 के समझौते के आधार पर भी इन मुकदमों को खारिज नहीं किया जा सकता। जस्टिस मयंक कुमार जैन ने सभी 18 संयुक्त मुकदमों को सुनवाई के योग्य करार देते हुए कहा कि प्रतिवादियों द्वारा उठाए गए आपत्तियों को बिना मुद्दों के निर्धारण और साक्ष्य के बिना नहीं सुलझाया जा सकता।

न्यायालय की टिप्पणियाँ

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि “देवता की भूमि पर समय से पहले कब्जे की वैधता और 12 अक्टूबर 1968 के समझौते की वैधता के सवाल तथ्य हैं जो केवल ट्रायल के दौरान पेश किए जाने वाले साक्ष्यों से ही सिद्ध हो सकते हैं।” कोर्ट ने आगे कहा कि प्रतिवादी पक्ष द्वारा उठाई गई आपत्तियों को साक्ष्य और मुद्दों के निर्धारण के बिना हल नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि हिंदू भक्तों के मुकदमे वक्फ एक्ट 1995, पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991, विशेष राहत अधिनियम 1963, लिमिटेशन एक्ट 1963 और सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 के आदेश XIII नियम 3A के तहत प्रतिबंधित नहीं हैं।

मुस्लिम पक्ष की प्रतिक्रिया

मुस्लिम पक्ष ने कोर्ट में यह दलील दी थी कि 26 फरवरी 1944 की अधिसूचना के अनुसार यह संपत्ति वक्फ संपत्ति है। कोर्ट ने इस पर कहा- “वर्तमान ढांचा 12 अक्टूबर 1968 के समझौते के आधार पर अस्तित्व में आया था। इसलिए यह नहीं माना जा सकता कि यह संपत्ति वक्फ अधिसूचना के तहत अधिसूचित थी।” शाही ईदगाह मस्जिद समिति और यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 7 नियम 11 के तहत हिंदू भक्तों के मुकदमों की माने जाने योग्यता को चुनौती दी थी। मुस्लिम पक्ष ने कहा कि यह मुकदमे समय सीमा के बाहर हैं, लेकिन कोर्ट ने उनकी याचिकाओं को खारिज कर दिया।

राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रियाएं

हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद विभिन्न प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। यूपी के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कहा-“हम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हैं। जिस प्रकार से राम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर का निर्माण हुआ, उसी प्रकार से आने वाले समय में श्रीकृष्ण भक्तों को भी न्याय मिलेगा।” वहीं, उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने कहा-“कोर्ट का निर्णय जनता की भावनाओं के अनुरूप है। भगवान राम और भगवान कृष्ण हमारी संस्कृति, विरासत और विचारधारा हैं।”

इस प्रकार, हाईकोर्ट के इस निर्णय ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद को एक नया मोड़ दे दिया है। अब यह देखना बाकी है कि सुप्रीम कोर्ट में इस मामले का अंतिम निर्णय क्या होगा और इससे जुड़े पक्षों की प्रतिक्रियाएं क्या होंगी।

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