image credit- livelaw
कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में 9 अगस्त को एक प्रशिक्षु महिला डॉक्टर के साथ गैंगरेप और हत्या की घटना ने पश्चिम बंगाल को फिर से हिला दिया है। यह मामला कामदुनी कांड की याद दिलाता है, जिसने 2013 में पूरे देश को सदमे में डाल दिया था।
कामदुनी गैंगरेप और हत्या कांड: न्याय के लिए लंबी लड़ाई
कामदुनी कांड 7 जून, 2013 को हुआ, जब 20 वर्षीय द्वितीय वर्ष की अंडरग्रेजुएट छात्रा अपने घर लौट रही थी। अकेले सफर कर रही इस छात्रा को कोलकाता के पास स्थित कामदुनी में अगवा कर एक सुनसान खेत में खींच लिया गया। अगली सुबह उसका शव बुरी तरह से क्षत-विक्षत अवस्था में पाया गया, जिसके निजी अंगों को ‘निर्ममता से फाड़ा’ गया था।
इस जघन्य अपराध के बाद पूरे राज्य में प्रदर्शन हुए और राज्य की तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सरकार को घटना की जांच का आदेश सीआईडी को देना पड़ा। उस समय सीआईडी में विशेष आईजी के पद पर कार्यरत विनीत गोयल ने इंस्पेक्टर आनंदमोय चटर्जी को इस मामले की जांच का नेतृत्व करने का निर्देश दिया।
कामदुनी कांड की जांच और अदालती कार्यवाही
कामदुनी कांड में कुल नौ लोगों को गिरफ्तार किया गया था, जिनमें से दो – रफीकुल इस्लाम और नूर अली को ‘प्रमाणों की कमी’ के कारण बरी कर दिया गया, जबकि गोपाल नस्कर की मुकदमे के दौरान मृत्यु हो गई। जनवरी 2016 में ट्रायल कोर्ट ने सैफुल अली, अंसार अली और अमीन अली को मौत की सजा सुनाई, जबकि शेख इमानुल इस्लाम, अमीनुर इस्लाम और भोला नस्कर को 10 साल की जेल की सजा दी गई। इस मामले को ‘दुर्लभ से दुर्लभतम’ अपराध की श्रेणी में रखा गया था।
अक्टूबर 2023: हाई कोर्ट का फैसला और विवाद
हालांकि अक्टूबर 2023 में कलकत्ता हाई कोर्ट ने सैफुल और अंसार की मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया, जबकि अमीन को बरी कर दिया गया। जिन तीन दोषियों को उम्रकैद की सजा दी गई थी, उन्हें उनकी सजा पूरी होने के बाद रिहा कर दिया गया। हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच ने यह पाया कि ट्रायल कोर्ट ने मौत की सजा सुनाते समय ‘गलती’ की थी, क्योंकि राज्य यह साबित करने में विफल रहा कि साजिश को ‘संदेह से परे’ साबित किया जा सके।
इस फैसले से असंतुष्ट पश्चिम बंगाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी है।