Durga Puja 2024-कोलकाता की दुर्गा पूजा: आस्था, कला और उत्सव का अभूतपूर्व संगम

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कोलकाता की दुर्गा पूजा (kolkata durga puja) का इतिहास लगभग 400 साल पुराना है और यह पश्चिम बंगाल का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है। दुर्गा पूजा की शुरुआत 16वीं शताब्दी में मानी जाती है, जब बंगाल के जमींदारों ने सामूहिक रूप से इस उत्सव को मनाना शुरू किया था। इस पूजा का धार्मिक महत्व मां दुर्गा के महिषासुर पर विजय को दर्शाता है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। दुर्गा पूजा (Durga Puja 2024) कोलकाता के साथ-साथ पूरे बंगाल में एक भव्य तरीके से मनाई जाती है, जहां देवी दुर्गा की मूर्तियों की पूजा की जाती है और पारंपरिक रीतियों का पालन किया जाता है।

सांस्कृतिक धरोहर और कला का संगम- Durga Puja

दुर्गा पूजा के दौरान, कोलकाता कला और सांस्कृतिक प्रदर्शनों का केंद्र बन जाता है। पंडालों में देवी दुर्गा की विशाल और अद्भुत मूर्तियाँ स्थापित की जाती हैं, जिन्हें पारंपरिक कारीगरों द्वारा महीनों की मेहनत से तैयार किया जाता है। हर साल पंडालों की सजावट एक नई थीम पर आधारित होती है, जो न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक होती है, बल्कि कला, संस्कृति और सामाजिक संदेशों का भी प्रतिनिधित्व करती है। इन पंडालों की सजावट और मूर्तियों को देखने के लिए लाखों लोग कोलकाता और आसपास के क्षेत्रों से आते हैं।

सार्वजनिक उत्सव और भक्ति भावना- Mahalaya 2024

दुर्गा पूजा के दिनों में कोलकाता एक उत्सवमय माहौल में डूब जाता है। शहर के हर कोने में पंडाल सजाए जाते हैं, जहां लोग मां दुर्गा की पूजा करने के लिए जुटते हैं। धाक, ढोल और शंख की ध्वनि में पूजा की शुरुआत होती है, जो भक्ति और धार्मिक भावना को और बढ़ा देती है। अष्टमी और नवमी के दिन विशेष रूप से भक्तों के लिए महत्वपूर्ण होते हैं, जहां कुमारी पूजन और हवन जैसे अनुष्ठान किए जाते हैं। इसके अलावा सिंदूर खेला और देवी दुर्गा की प्रतिमा का विसर्जन इस पूजा का अंतिम चरण होता है, जिसे अत्यधिक श्रद्धा और भक्ति के साथ संपन्न किया जाता है।

सामाजिक और आर्थिक प्रभाव- Dussehra 2024

दुर्गा पूजा का केवल धार्मिक ही नहीं बल्कि सामाजिक और आर्थिक दृष्टिकोण से भी बहुत बड़ा महत्व है। इस दौरान लाखों लोग रोजगार पाते हैं, चाहे वह मूर्तिकार हों, कारीगर, कपड़ा व्यापारी या पंडाल आयोजक। दुर्गा पूजा के दिनों में कोलकाता का पर्यटन भी चरम पर होता है, जिससे होटल, रेस्तरां और अन्य सेवाओं को भी आर्थिक लाभ मिलता है। इस पूजा के माध्यम से कोलकाता की सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान और भी मजबूत होती है, और यह स्थानीय लोगों को एकसाथ जोड़ने का महत्वपूर्ण अवसर बनती है।

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