INDvsPAK Asia Cup – भू-राजनीतिक और सुरक्षा संदर्भ में भारत को पाकिस्तान से नियमित या द्विपक्षीय क्रिकेट नहीं खेलना चाहिए (BoycottAsiaCup2025); बहुपक्षीय टूर्नामेंटों में भाग लेना रणनीतिक रूप से सीमित, व्यावहारिक और भारत-हितैषी विकल्प है।
- सीमा पार आतंक, घुसपैठ और शत्रुतापूर्ण बयानबाज़ी के बीच खेल संबंधों का सामान्यीकरण ग़लत संकेत देता है, जिससे भारत की नैतिक-रणनीतिक स्थिति कमजोर पड़ सकती है। यह समय शहादत और सुरक्षा-संवेदनशीलता के बीच संवेदनशील है, अतः द्विपक्षीय मैच प्रतीकात्मक वैधता दे सकते हैं।
- भारत की दीर्घकालीन नीति रही है कि खेल-संबंध राज्यों की नीतिगत स्थितियों से कटी हुई नहीं हैं; जनभावनाएँ और राष्ट्रीय मनोबल भी इसी कसौटी पर टिके हैं।
कूटनीतिक असर
- द्विपक्षीय क्रिकेट (indiaVsPakistan) शुरू करना पाकिस्तान को बिना शर्त सॉफ्ट-डिप्लोमैटिक स्पेस देता है, जबकि आतंकी ढांचे पर सार्थक कार्रवाई के बिना यह भारत की सुसंगत नीति को डाइल्यूट करता है।
- बहुपक्षीय मंचों में खेलना अलग बात है—वहां भागीदारी नियम-आधारित अंतरराष्ट्रीय ढांचे के भीतर आती है, जिससे भारत पर अलग-थलग पड़ने का आरोप नहीं लगता, पर संकेत साफ़ रहता है कि द्विपक्षीय सामान्यीकरण नहीं है।
आंतरिक सुरक्षा और नैरेटिव
- आतंक-संबंधी घटनाओं के बाद “खेलो-पर-खून” का नैरेटिव शत्रुपक्ष के लिए प्रचार-लाभ दे सकता है; यह घरेलू जनभावनाओं के विपरीत भी जाता है।
- सुरक्षा एजेंसियों की प्राथमिकता सीमा-विरोध और नेटवर्क-डिसरप्शन है; स्पेक्टेकल-क्रिकेट से मीडिया-डिस्ट्रैक्शन बनता है, जिससे रणनीतिक डिसकोर्स कमजोर हो सकता है।
आर्थिक और सॉफ्ट-पावर समीकरण
- भारत के पास क्रिकेट-इकोसिस्टम में निर्णायक सॉफ्ट-पावर है; द्विपक्षीय शृंखला से राजस्व और दृश्यता का लाभ अधिकतर पाकिस्तान बोर्ड/इकोसिस्टम को तुलनात्मक बढ़त दे सकता है।
- भारत की ब्रांड-इक्विटी इतनी मज़बूत है कि बहुपक्षीय टूर्नामेंटों तक सीमित रहकर भी वैश्विक फैनबेस और प्रसार में कोई हानि नहीं होती, जबकि सख्त सिद्धांत-आधारित छवि सुदृढ़ रहती है।
खेल और राज्य नीति का संतुलन
- खेल को कूटनीति से पूरी तरह अलग देखना आदर्शवादी है, यथार्थवादी नहीं—विशेषकर जब सुरक्षा-सम्बंधित मुद्दे सक्रिय हों। खेल का उपयोग “पोस्ट-कंडिशनल” कॉन्फिडेंस बिल्डिंग के लिए होना चाहिए, न कि “प्री-कंडिशनल” छवि-धुलाई के लिए।
- शर्तें स्पष्ट होनी चाहिए: ठोस, सत्यापित और निरंतर कार्रवाई—सीज़फ़ायर अनुपालन, आतंकी ढांचे पर दृश्यमान शिकंजा, हेट-नैरेटिव में गिरावट—तभी द्विपक्षीय बहाली पर विचार सार्थक है।
व्यावहारिक नीति-सुझाव
- द्विपक्षीय क्रिकेट—टालें, जब तक सत्यापन-योग्य प्रगति न हो।
- बहुपक्षीय टूर्नामेंट—नियम-आधारित भागीदारी जारी रखें; यह भारत की परिपक्व, जिम्मेदार छवि रखता है और अलगाव के आरोप से बचाता है।
- मैसेजिंग—स्पष्ट डो-कमेंट: “खेलेंगे, पर शर्तों और मंचों के भीतर; आतंक और घृणा-राजनीति के साथ सामान्यीकरण नहीं।”
- घरेलू संवाद—शहीद परिवारों और सुरक्षा बिरादरी के प्रति सम्मानजनक नीति-संकेत; खेल-सफलता को सैन्य-राजनीतिक मुद्दों पर “कवर” न बनने दें।
निष्कर्ष
- द्विपक्षीय क्रिकेट अभी नहीं—यह भारत की रणनीतिक निरंतरता, नैतिक स्पष्टता और सुरक्षा प्राथमिकताओं के अनुरूप है।
- बहुपक्षीय मंचों तक सीमित भागीदारी, सख्त संदेश और सशर्त-बहाली का फ़्रेमवर्क ही इस समय सबसे संतुलित, देशहितकारी और राष्ट्रवादी नीति-पथ है।