शिवलिंग की पूजा हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण और पवित्र मानी जाती है। यह पूजा भगवान शिव को प्रसन्न करने और उनकी कृपा प्राप्त करने का एक प्रमुख माध्यम है। इस लेख में हम शिवलिंग की पूजा विधि को विस्तार से समझेंगे और जानेंगे कि कैसे सही तरीके से पूजा करें ताकि भगवान शिव की कृपा प्राप्त हो सके।
पूजा की तैयारी
शिवलिंग की पूजा करने से पहले, पूजा स्थल को स्वच्छ और पवित्र करना आवश्यक है। पूजा स्थल पर गंगाजल छिड़ककर उसे शुद्ध करें। पूजा के लिए निम्नलिखित सामग्री तैयार रखें:
गंगाजल या स्वच्छ जल
दूध
दही
शहद
घी
शर्करा
चंदन
बेलपत्र
पुष्प (विशेषकर सफेद फूल)
अक्षत (चावल)
धूप
दीप
नैवेद्य (प्रसाद)
रुद्राक्ष माला
पूजा स्थल पर शिवलिंग को स्थापित करें और पूजन सामग्री को सुचारू रूप से व्यवस्थित करें।
अभिषेक की प्रक्रिया
शिवलिंग की पूजा में अभिषेक का विशेष महत्व है। अभिषेक के दौरान निम्नलिखित मंत्रों का उच्चारण करते हुए क्रम से जल से शुद्धि करें और दूध, दही, शहद, और घी एवं शर्करा से शिवलिंग का अभिषेक करें:
जल अभिषेक:
ॐ गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिन्धु कावेरी जलेऽस्मिन्सन्निधिं कुरु॥
दुग्ध अभिषेक:
ॐ पय: पृथिव्यां पय ओषधीषु पयो दिव्यन्तरिक्षे पयो धाः पयस्वतीः ।
प्रदिशः सन्तु मह्यम्।।
कामधेनुसमुद्भूतं सर्वेषां जीवनं परम्।
पावनं यज्ञहेतुहेतुश्च पयःस्नानार्थमर्पि तम्।।
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः , पयः स्नानंसमर्पयामि ।
(जल स्नान करायें।)
दधि (दही) अभिषेक:
ॐ दधिक्राव्णो अकारिषं जिष्णोरश्वस्य वाजिनः ।
सुरभि नो मुखाकरत्प्रण आयू षि तारिषत्।।
पयसस्तु समुद्भूतं मधुराम्लं शशिप्रभम्।
दध्यानीतं मया देव! स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्।।
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः , दधिस्नानं समर्पयामि ।
(पुनः जल स्नान करायें।)
घृत (घी) अभिषेक:
ॐ घृतं मिमिक्षे घृतमस्य योनिर्घृते श्रितो घृतम्वस्य धाम।
अनुष्वधमा वह मादयस्व स्वाहाकृतं वृषभ वक्षि हव्यम्।।
नवनी तसमुत्पन्नं सर्वसंतो षका रकम्।
घृतं तुभ्यं प्रदास्यामि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्।।
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः , घृतस्नानं समर्पयामि ।
(पुनः जल स्नान करायें।)
मधु (शहद) अभिषेक:
ॐ मधुव्वाताऽऋतायते मधुक्षरन्ति सिन्धवः ।
माध्वीर्नः सन्त्वोषधीः मधुनक्तमुतोषसो मधुमत्पार्थिवरजः ।
मधुद्यौरस्तु नः पिता मधुमान्नो व्वनस्पतिर्म्मधुमाँऽ अस्तु सूर्यः माध्वीर्गावो भवन्तु नः ।।
पुष्परेणुसमुद्भूतं सुस्वादु मधुरं मधु।
तेजः पुष्टि करं दिव्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्।।
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः , मधुस्नानं समर्पयामि ।
(पुनः जल स्नान करायें।)
शर्करा (मिश्री या गन्ने का रस) अभिषेक:
ॐ अपा रसमुद्वयस सूर्ये सन्त समाहितम्।
अपा रसस्य यो रसस्तं वो गृह्णाम्युत्तममुपयामगृहीतोऽसीन्द्राय त्वा जुष्टं गृह्णाम्येष ते योनिरिन्द्राय त्वा जुष्टतमम्।।
इक्षुरससमुद्भूतां शर्करां पुष्टिदां शुभाम्।
मलापहारिकां दिव्यां स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्।।
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः , शर्करा स्नानं समर्पयामि ।
(पुनः जल स्नान करायें।)
पञ्चामृतस्नान
अंत में पांचो वस्तुओ को एक में मिलकर अभिषेक करना चाहिए ।
ॐ पञ्चनद्यः सरस्वतीमपि यन्ति सश्रोतसः ।
सरस्वती तु पञ्चधा सोदेशेऽभवत्सरित्।।
पञ्चामृतं मयानीतं पयो दधि घृतं मधु।
शर्करया समायुक्तं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्।।
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यांनमः , पञ्चामृतस्नानं समर्पयामि ।
अभिषेक के बाद शिवलिंग को स्वच्छ जल से धो लें और स्वच्छ कपड़े से पोंछ दें।
शिवलिंग का श्रृंगार
अभिषेक के बाद, शिवलिंग का श्रृंगार करें। चंदन का लेप लगाएं और फूलों से सजाएं। विशेष रूप से, बेलपत्र को त्रिदलीय रूप में चढ़ाएं। बेलपत्र चढ़ाते समय निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करें:
त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रियायुधम्।
त्रिजन्मपापसंहारं एकबिल्वं शिवार्पणम्॥
बेलपत्र के साथ-साथ अक्षत (चावल) और पुष्प भी अर्पित करें। धूप और दीप जलाएं और शिवलिंग के समक्ष रखें।
यदि आप इन मंत्रो के उच्चारण में कठिनाई महसूस कर रहे हैं तो आप हर प्रक्रिया के बाद “ॐ नमः शिवाय ” का जाप कर सकते हैं।
मंत्र जप और आरती
शिवलिंग की पूजा में मंत्र जप और आरती का विशेष महत्व है। “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करते हुए शिवलिंग के चारों ओर रुद्राक्ष माला फेरें। मंत्र जप के बाद शिवलिंग की आरती करें। आरती के समय निम्नलिखित आरती मंत्र का उच्चारण करें:
ॐ जय शिव ओंकारा, ॐ जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे।
हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखत त्रिभुवन जन मोहे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
अक्षमाला वनमाला मुण्डमालाधारी।
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघंबर अंगे।
सनकादिक गरुड़ादिक भूतादिक संगे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
कर के मध्य कमण्डल चक्र त्रिशूलधारी।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा।
भांग धतूरे का भोजन, भस्मी में वासा॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला।
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, मनवान्छित फल पावे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥ स्वामी ओम जय शिव ओंकारा॥
आरती के बाद, सभी उपस्थित भक्तों को प्रसाद वितरित करें और भगवान शिव की कृपा प्राप्त करें।
अंत में ध्यान और प्रार्थना
पूजा के अंत में, भगवान शिव का ध्यान करें और उनसे अपने जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की कामना करें। निम्नलिखित प्रार्थना मंत्र का उच्चारण करें:
करचरण कृतं वाक्कायजं कर्मजं वा।
श्रवणनयनजं वा मानसं वापराधम्॥
विहितमविहितं वा सर्वमेतत्क्षमस्व।
जय जय करुणाब्धे श्रीमहादेव शम्भो॥
इस प्रकार शिवलिंग की पूजा विधि को पूर्ण करें और भगवान शिव की असीम कृपा प्राप्त करें। शिवलिंग की पूजा न केवल धार्मिक कृत्य है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक साधना भी है जो मन को शांति और आत्मा को शुद्धता प्रदान करती है। शिवलिंग की पूजा से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
Disclaimer– इस लेख में दी गयी जानकारी विभिन्न मान्यताओं,धर्मग्रंथों और दंतकथाओं से ली गई हैं, सत्यसंवाद इन की पुष्टि नहीं करता।