काशीराम जयंती पर मायावती (Mayawati) का बड़ा सियासी बयान: भाजपा की तारीफ, सपा पर तीखा हमला – यूपी की राजनीति में नए समीकरण!

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काशीराम जयंती के मौके पर बसपा सुप्रीमो मायावती ने आज एक ऐसा बयान दिया जिसने उत्तर प्रदेश की राजनीति में हलचल मचा दी
उन्होंने भाजपा सरकार की कुछ योजनाओं की सराहना की और समाजवादी पार्टी पर जमकर हमला बोला।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह बयान 2026 के लोकसभा चुनाव से पहले बदलते राजनीतिक समीकरणों की दिशा में इशारा करता है।

मायावती बोलीं – “भाजपा ने कुछ योजनाएं सही दिशा में लागू की हैं”

मायावती ने पहली बार खुले मंच से भाजपा की कार्यप्रणाली को लेकर सकारात्मक टिप्पणी की।
उन्होंने कहा –

“केंद्र और राज्य की कुछ योजनाएं गरीबों व दलितों के लिए उपयोगी साबित हुई हैं।”

यह बयान बसपा की नई राजनीतिक रणनीति (New Political Strategy) के रूप में देखा जा रहा है, जिसमें मायावती अब ‘कट्टर विरोध’ की जगह ‘संतुलित रुख’ अपनाती नजर आ रही हैं।

सपा पर सीधा हमला – “वोट बैंक की राजनीति करने वाली पार्टी”

काशीराम जयंती के मंच से मायावती ने सपा पर निशाना साधते हुए कहा –

“सपा हमेशा बहुजन समाज को केवल वोट बैंक समझती रही, लेकिन उनके विकास के लिए कुछ नहीं किया।”

उन्होंने सपा को “दोहरी राजनीति” करने वाली पार्टी बताया।
यह बयान साफ संकेत देता है कि बसपा अब सपा से किसी भी तरह की राजनीतिक निकटता नहीं रखने वाली।

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दलित वोट बैंक को फिर से साधने की कोशिश

राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि मायावती की यह ‘सॉफ्ट भाजपा नीति’ दरअसल दलित वोट बैंक को फिर से बसपा के पाले में लाने की कवायद है।
बीते वर्षों में भाजपा ने दलित समाज में अपनी पैठ मजबूत की थी।
अब मायावती उस वर्ग को यह संदेश देना चाहती हैं कि –

“बसपा ही असली बहुजन हितैषी पार्टी है।”

2026 लोकसभा चुनाव की तैयारी शुरू

मायावती का यह रुख बताता है कि बसपा अब किसी गठबंधन राजनीति में नहीं जाएगी।
वे आगामी चुनाव में “स्वतंत्र लड़ाई” की दिशा में बढ़ रही हैं।
राजनीतिक जानकारों के अनुसार, यह रणनीति बसपा को सपा और भाजपा दोनों से अलग पहचान दिलाने में मदद कर सकती है।

राजनीतिक विश्लेषकों की राय

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक प्रो. अरविंद मिश्रा के अनुसार –

“मायावती ने भाजपा की तारीफ कर सपा को बड़ा संदेश दिया है। यह सियासी ‘संतुलन साधने’ की रणनीति है ताकि बसपा का आधार वर्ग भ्रमित न हो और सपा से दूरी बनाए रखे।”

वे आगे कहते हैं –

“यह भी संभव है कि मायावती अप्रत्यक्ष रूप से भाजपा को फायदा पहुंचाते हुए खुद को राजनीतिक रूप से प्रासंगिक बनाए रखना चाहती हों।”

क्या बदलेगा यूपी का सियासी समीकरण?

अगर बसपा का यह रुख आगे भी जारी रहा, तो उत्तर प्रदेश की राजनीति त्रिकोणीय (Three-Cornered Battle) हो सकती है —

  • भाजपा को वोटों का बंटवारा होने से फायदा मिलेगा।
  • सपा का मुस्लिम-दलित गठजोड़ कमजोर होगा।
  • बसपा को स्वतंत्र पहचान और मीडिया फोकस मिलेगा।

मायावती का संदेश – “संघर्ष नहीं, रणनीति से मुकाबला”

पिछले कुछ वर्षों में मायावती ने अपने राजनीतिक तेवरों को संतुलित किया है।
अब वे नारेबाजी से ज्यादा रणनीतिक बयानबाज़ी पर जोर दे रही हैं।
उनकी नई छवि है —
“संतुलित लेकिन दृढ़ नेत्री”, जो दलित समाज के अधिकारों की बात करती है लेकिन टकराव की राजनीति से दूरी बनाकर चलती है।

निष्कर्ष

काशीराम जयंती पर मायावती का यह बयान यूपी की राजनीति के नए दौर की शुरुआत हो सकता है।
भाजपा की तारीफ और सपा पर हमले से उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया है कि बसपा अब “संतुलन की राजनीति” के रास्ते पर है।
यदि यह रणनीति सफल होती है, तो 2026 में मायावती एक बार फिर सत्ता की दौड़ में निर्णायक खिलाड़ी बनकर उभर सकती हैं।

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