उत्तर प्रदेश में 69000 शिक्षक भर्ती का मुद्दा भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए बड़ा सिरदर्द बन गया है। प्रदेश में 10 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव की तैयारियों में जुटी भाजपा को कोर्ट के हालिया फैसले ने गहरा झटका दिया है। जहां पार्टी सपा के खिलाफ अयोध्या और कन्नौज की घटनाओं को लेकर हमलावर हो रही थी, वहीं अब इस नए विवाद ने भाजपा को बैकफुट पर ला दिया है। इस मामले ने विपक्ष को भी एक बड़ा सियासी हथियार दे दिया है, जिसे वे आगामी चुनावों तक भुनाने की तैयारी कर रहे हैं।
कोर्ट के फैसले ने सरकार की ईमानदारी पर उठाए सवाल
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 1 जून 2020 और 5 जनवरी 2022 को जारी चयन सूची को रद्द करते हुए राज्य सरकार को तीन महीने के भीतर नई सूची तैयार करने का आदेश दिया है। इस फैसले को लेकर बहुजन समाज पार्टी (BSP) की प्रमुख मायावती ने कहा- “हाई कोर्ट का यह निर्णय स्पष्ट करता है कि भाजपा सरकार ने अपना काम ईमानदारी और निष्पक्षता से नहीं किया है। खासकर आरक्षित वर्ग के पीड़ितों को न्याय सुनिश्चित किया जाना चाहिए।”
सपा का आक्रामक रुख: पारदर्शिता की मांग और उम्मीदवारों के साथ खड़े रहने का वादा
समाजवादी पार्टी (SP) के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इस मुद्दे पर भाजपा को घेरते हुए कहा- “आखिरकार 69000 शिक्षक भर्ती भी भाजपा के घोटाले, धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार का शिकार साबित हुई। हमारी मांग थी कि एक नई निष्पक्ष सूची बनाई जाए ताकि पारदर्शी और निष्पक्ष नियुक्तियां हो सकें और भाजपा काल में बिगड़ी प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था फिर से पटरी पर आ सके।” उन्होंने आगे कहा कि उनकी पार्टी नई सूची पर कड़ी नजर रखेगी और यह सुनिश्चित करेगी कि किसी भी उम्मीदवार के साथ अन्याय न हो।
उम्मीदवारों की जीत: नई सूची की निगरानी की जाएगी
इलाहाबाद हाई कोर्ट की दो सदस्यीय बेंच जिसमें न्यायमूर्ति ए.आर. मसूदी और न्यायमूर्ति बृजराज सिंह शामिल थे, ने 13 मार्च 2023 को दिए गए एकल न्यायाधीश के फैसले के खिलाफ 90 विशेष अपीलों की सुनवाई के बाद यह निर्णय सुनाया। कोर्ट का यह फैसला 13 अगस्त को सुनाया गया और 17 अगस्त को वेबसाइट पर अपलोड किया गया। विपक्षी दलों ने इसे उम्मीदवारों की जीत बताते हुए कहा कि वे इस मुद्दे पर पूरी निगरानी रखेंगे और उम्मीदवारों को न्याय दिलाने के लिए संघर्ष करते रहेंगे।