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हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने सुलतानपुर लोकसभा सीट से भाजपा प्रत्याशी और पूर्व सांसद मेनका गांधी द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया है। मेनका गांधी ने सुलतानपुर से निर्वाचित सपा सांसद राम भुआल निषाद के चुनाव को चुनौती दी थी। न्यायमूर्ति राजन रॉय की एकल पीठ ने पाया कि याचिका निर्धारित समयसीमा से सात दिन विलंब से दाखिल की गई थी।
याचिका में देरी और कानूनी बाधाएं
मेनका गांधी द्वारा दायर इस याचिका में देरी का मुद्दा मुख्य रूप से अदालत में उठाया गया। निर्वाचन याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने स्पष्ट किया कि चुनाव याचिकाओं के लिए 45 दिनों की समयसीमा होती है और इस मामले में याचिका इस निर्धारित समयसीमा के बाद दाखिल की गई थी। मेनका गांधी के अधिवक्ताओं ने अदालत में दलील दी कि उनकी मुवक्किल की तबीयत खराब थी जिसके कारण याचिका दाखिल करने में देरी हुई।
जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम और विलंब माफी
कोर्ट ने निर्णय में स्पष्ट किया कि जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 86 के तहत विलंब से दाखिल होने वाली याचिकाओं को खारिज करने का प्रावधान है। अदालत ने यह भी कहा कि परिसीमा अधिनियम के तहत विलंब माफी के प्रावधान इस कानून पर लागू नहीं होते हैं। इस निर्णय के बाद अदालत ने याचिका को सुनवाई के योग्य नहीं मानते हुए खारिज कर दिया।
याचिका का आधार और मुख्य तर्क
मेनका गांधी की याचिका में मुख्य रूप से यह दावा किया गया था कि राम भुआल निषाद ने नामांकन के समय दाखिल शपथ पत्र में अपने आपराधिक इतिहास की जानकारी छिपाई थी। याचिका में आरोप लगाया गया था कि राम भुआल निषाद पर 12 आपराधिक मुकदमे थे लेकिन उन्होंने शपथ पत्र में केवल 8 मुकदमों की जानकारी दी थी। गोरखपुर और देवरिया जिलों के विभिन्न थानों में दर्ज चार आपराधिक मामलों की जानकारी उन्होंने छिपाई थी।
याचिका की मांग और अदालत का निर्णय
मेनका गांधी की याचिका में यह मांग की गई थी कि राम भुआल निषाद का निर्वाचन निरस्त कर उन्हें निर्वाचित घोषित किया जाए। हालांकि अदालत ने निर्धारित समयसीमा से बाहर दाखिल याचिका को खारिज कर दिया और इस प्रकार राम भुआल निषाद के निर्वाचन को चुनौती देने का प्रयास विफल हो गया।