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मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल का पहला बजट: वित्तीय अनुशासन के साथ करदाता राहत पर जोर
नई दिल्ली: मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल का पहला बजट 23 जुलाई को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा प्रस्तुत किया गया। यह उनका सातवां लगातार बजट है, जो पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई का रिकॉर्ड तोड़ता है। इस बजट में शिक्षा, रोजगार और कौशल विकास के लिए ₹1.48 लाख करोड़ का प्रावधान किया गया है। भाजपा-नीत एनडीए सरकार के फिर से सत्ता में आने के बाद यह पहला बजट है, जिसमें करदाता राहत और वित्तीय अनुशासन को संतुलित करने के उपाय शामिल हैं।
राजनीतिक समीकरण और आर्थिक नीतियों पर जनाक्रोश
2019 में भाजपा के पास लोकसभा में 303 सीटें थीं, लेकिन अब यह संख्या घटकर 240 हो गई है। गठबंधन की राजनीति और क्षेत्रीय सहयोगी दलों की आकांक्षाओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। भाजपा की सीटों की कमी से यह संकेत मिलता है कि सरकार की 2019-24 के दौरान अपनाई गई आर्थिक नीतियों के प्रति जनता में असंतोष और असहमति रही है। जनता ने अपनी चिंताओं और समस्याओं के समाधान में सरकार की असमर्थता को लेकर नाराजगी व्यक्त की है। इसलिए, इस बजट पर सभी की नजरें टिकी हुई हैं।
वित्तीय घाटा और आर्थिक सर्वेक्षण: विकास दर में गिरावट की संभावना
वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए राजकोषीय घाटा जीडीपी का 5.63% था, जबकि वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए 5.1% का लक्ष्य रखा गया है। व्यक्तिगत कर का कुल प्रत्यक्ष कर संग्रह में महत्वपूर्ण योगदान को देखते हुए, सरकार के ऐसे उपायों को पेश करने की संभावना नहीं है जो कर राजस्व में बड़ी कमी लाएंगे। बजट से पहले, निर्मला सीतारमण ने 22 जुलाई को लोकसभा में आर्थिक सर्वेक्षण पेश किया। सर्वेक्षण ने वित्तीय वर्ष 2025 के लिए भारत की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर को 6.5% से 7% के बीच रहने का अनुमान लगाया है। यह 2024-25 के लिए अनुमानित आर्थिक वृद्धि दर पिछले वित्तीय वर्ष की 8.2% की वृद्धि दर से कम है।
वित्त मंत्री के अनुसार, बजट में करदाता राहत और वित्तीय अनुशासन के बीच संतुलन बनाने का प्रयास किया गया है। शिक्षा, रोजगार और कौशल विकास के लिए बड़े पैमाने पर निवेश करने का प्रावधान किया गया है, जिससे देश के युवाओं को भविष्य में बेहतर अवसर मिल सकें। बजट पर राजनीतिक और आर्थिक समीक्षकों की गहन निगाहें हैं, और आने वाले दिनों में इसके प्रभाव का विश्लेषण महत्वपूर्ण रहेगा।