‘रामचरितमानस’ को विश्व धरोहर के रूप में मिली मान्यता, क्या हैं इसके मायने

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भारतीय साहित्य के अमूल्य रत्न ‘रामचरितमानस’ को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर के रूप में मान्यता प्राप्त हुई है। यह घोषणा न केवल भारत के लिए, बल्कि समस्त विश्व के लिए एक गौरवशाली क्षण है। इस प्रतिष्ठित सम्मान के साथ रामचरितमानस ने अपने आप को विश्व साहित्य के महानतम कृतियों में स्थान दिलाया है।

गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस ने सदियों से भारतीय संस्कृति और जीवन दर्शन को प्रभावित किया है। इसकी गहन शिक्षाएं और अद्भुत काव्य शैली ने पाठकों और श्रोताओं को अनंत काल तक प्रेरित किया है। यूनेस्को की ‘मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड एशिया-पैसिफिक रीजनल रजिस्टर’ में इसका समावेशन इस बात का प्रमाण है कि रामचरितमानस की विरासत सिर्फ भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि यह विश्वव्यापी है।

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इस ऐतिहासिक उपलब्धि के लिए 38 देशों ने अपना समर्थन दिया है, जो यह दर्शाता है कि रामचरितमानस की शिक्षाएं और मूल्य सार्वभौमिक हैं और सभी संस्कृतियों में सम्मानित की जाती हैं। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (IGNCA) ने इस उपलब्धि को सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है1।

रामचरितमानस की इस उपलब्धि के साथ, भारतीय साहित्य और संस्कृति की अन्य महत्वपूर्ण कृतियां, जैसे कि पंचतंत्र और सहृदयलोक-लोकन, भी यूनेस्को की मान्यता प्राप्त कर चुकी हैं1। यह भारत के लिए एक ऐतिहासिक क्षण है, जो विश्व स्तर पर भारतीय साहित्यिक विरासत की महत्ता को रेखांकित करता है।

अंततः, रामचरितमानस की यूनेस्को द्वारा मान्यता न केवल इसके लेखक गोस्वामी तुलसीदास की प्रतिभा का सम्मान है, बल्कि यह भारतीय साहित्य की अमरता का भी प्रतीक है। यह विश्व धरोहर के रूप में इसकी स्थापना, आने वाली पीढ़ियों को इसकी अनमोल शिक्षाओं से लाभान्वित करती रहेगी और साहित्यिक विरासत के संरक्षण में एक मील का पत्थर साबित होगी

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